लखनऊ।(आवाज न्यूज ब्यूरो) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा (शारीरिक रूप से विकलांग, स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों और पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षण) अधिनियम, 1993 की धारा 2 (बी) के तहत परपोता ’स्वतंत्रता सेनानियों का आश्रित’ नहीं है। न्यायालय ने कृष्णानंद राय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य पर भरोसा किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि एक परपोता ’स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रित’ की परिभाषा में नहीं आता है।
याचिकाकर्ता की प्रार्थना को नहीं किया स्वीकार
यह फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने कहा कि “इस मामले में याचिकाकर्ता ने स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित की परपोती होने का दावा किया है और कृष्णानंद राय (सुप्रा) के फैसले के याचिकाकर्ताओं के समान परिस्थितिया हैं और उक्त फैसले का अनुपात वर्तमान मामले के तथ्यों पर पूरी तरह लागू होगा। इसलिए, याचिकाकर्ता को भी स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रित की परिभाषा में शामिल नहीं किया जाएगा। इस आधार पर याचिकाकर्ता द्वारा की गई प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।