जीवन की आपाधापी में क्या जी रहे हैं हम?

जब हम अपने जीवन की शुरुआत करते हैं तो हमारा मन सब कुछ पाने को लालायित रहता है। हमें पैसे के साथ-साथ नाम कमाने की भी चाह होती है। ये चाहत काफी हद तक सही भी है। पर, इसके चक्कर में परिवार और अपनी खुशियों को अहमियत न देना गलत है। अपनी जिम्मेदारियों और अपनी खुशियों के साथ समझौता किसी भी हाल में सही नहीं हो सकता। जीवन में आपका पैसा और नाम कमाना या कामयाब इंसान बनना जितना जरुरी है उतना ही जरुरी छोटी- छोटी खुशियों को महसूस करना भी है। अगर आप इन पलों को भूलकर बस आगे बढ़ने में लगे हैं तो आपको एक दिन इस बात का दुःख जरूर होगा की मैंने क्या कुछ खोया थोड़ा-सा पाने के चक्कर में? हम सब के हित में यही है कि हम चैन से रहें और दूसरों को भी चैन से रहने दे। जीवन की आपाधापी में हम ये जान लें कि हमारा कोई भी पल आखिरी हो सकता है इसलिए हर पल को बिना किसी अहंकार के सच्चे मन से सर्वे भवन्तु सुखिन: के भाव से जिए।

-प्रियंका सौरभ

आज के अशांत युग में शांति परमावश्यक है। कल कारखानों के शोर, यातायात के साधनों का शोर, जीवन की आपाधापी आज बाहरी तथा भीतरी अशांति को जन्म दे रही है। इसके कारण तनाव, डिप्रेशन का जन्म हो रहा है। प्रकृति की हरियाली व शांत प्राकृतिक दृश्यों की कमी लोग अनुभव करने लगे हैं। नगरों से दूर लोग ग्रामीण शांत वातावरण में रहना पसंद करने लगे हैं। यह मनःस्थिति शांति की उपयोगिता को प्रदर्शित करती है। आज हम जिस समय में रह रहे हैं वह अनेक तरह से विलक्षण है। देखा जाए तो हर समय अनूठा होता है। लेकिन आज का दौर विशेष तौर पर आपाधापी, जीवन संघर्ष, कटुताओं, वैचारिक संकीर्णताओं, निराशा, हताशा जैसे अवसादों से भरा है। आज के इस आपाधापी भरे जीवन में अपना अस्तित्व बनाए रखना और अपनी जमीन पर खड़े रहना पहले से ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है। समय के साथ बढ़ती हमारी अपेक्षाएं और आकांक्षाएं व जरूरतें हमें दिन-रात परेशान करती रहती है। जो है वह खूबसूरत है हमने कब ये सोचा? सादगी की अवधारणाएं अब कहीं कूड़े में जा चुकी है। हमारी जितनी जरूरत है उतना हमारे पास हैं फिर भी हम संतुष्टि भरा जीवन नहो जी पा रहे हैं और यह असंतोष ही हमें लगातार भागने के लिए विवश करता है। हमें यह कतई सहन नहीं होता कि कोई हमसे आगे निकल जाए और इस दौड़ में हम उस सुख को जीना भूल जाते हैं जो ईश्वर ने हमें दिया है। यही कारण है कि हमारा तनाव बढ़ता है और रक्तचाप उच्च स्तर पर जाता है। जीवन की आपाधापी में हमें कुछ देर कहीं बैठकर सोचने का वक्त ही नहीं मिला कि क्या सही है और क्या गलत?

जब हम अपने युवा जीवन की शुरुआत करते हैं तो, हमारा मन सबकुछ पाने को लालायित रहता है। हमें पैसे के साथ साथ नाम कमाने की भी चाह होती है। ये चाहत काफी हद तक सही भी है। पर, इसके चक्कर में परिवार और अपनी खुशियों को अहमियत न देना गलत है। अपनी जिम्मेदारियों और अपनी खुशियों के साथ समझौता किसी भी हाल में सही नहीं हो सकता। जीवन में आपका पैसा और नाम कमाना या कामयाब इंसान बनना जितना जरुरी है उतना ही जरुरी छोटी छोटी खुशियों को महसूस करना भी है। अगर आप इन पलों को भूलकर बस आगे बढ़ने में लगे हैं तो आपको एक दिन इस बात का दुःख जरूर होगा की मैंने क्या कुछ खोया थोड़ा सा पाने के चक्कर में? जिन स्थितियों से तनाव उत्पन्न होता है उनसे अशांति मिलती है । आधुनिक शोधों से ज्ञात होता है कि लगभग पचहत्तर प्रतिशत रोगों का कारण तनाव होता है। आज हम बिना ठहरे बस भागते जा रहे हैं, भागते जा रहे हैं। और यही कारण है कि हमारे जीवन में एक दौर ऐसा आता है जब हम निराश और उदास लोगों से गिर जाते हैं। हमें लगता है कि कोई भी अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट नहीं है। आज जो हमें मिला है वह अपर्याप्त है। क्या कभी हम दूसरे कोण पर भागती हमारी जिंदगी का पहले कोण से मुआयना कर पाएंगे। अब सोचिए।।। क्या हमारे जीवन में उदासी और अवसाद का यह दौर ऐसे ही चलता रहेगा? क्या हमारे जीवन में कभी सकारात्मकता नहीं आएगी? यहां सकारात्मक होने का मतलब यह नहीं है कि जो गलत है उसे हम बेवजह सकारात्मकता के लिफाफे में लपेटकर स्वीकार करें। गलत को गलत ही कहा जाना चाहिए और उसका विरोध भी होना चाहिए। लेकिन हमें अनावश्यक नकारात्मकता से बचना चाहिए। मैं आज के समाज में और विशेष रूप से सोशल मीडिया के इस युग में देखती हूं कि हम चीजों को बिना जाने, बिना मामले की तह में पहुंचे किसी की आलोचना, निंदा करने और घटिया शब्दों का प्रयोग करने से भी नहीं बाज आते। क्या यह आपके नजरिए से सही है?

अगर हम तुरंत किसी बात …

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