खेती-किसानी करते हुए दस पुस्तकों का लेखन कर चुके साहित्यकार बलजीत सिंह

अलग-अलग विधाओं में दस पुस्तकें लिख चुके हांसी के राजपुरा के बलजीत सिंह; पेशे से किसान होने के साथ ही मन और आत्मा से एक सच्चे साहित्यकार भी हैं। हिसार के जाने-माने साहित्यकार  डॉ० रामनिवास ‘मानव’ को अपना गुरुवर मानते है और हिसार के छाजूराम मेमोरियल जाट कॉलेज में उनसे हिंदी पढ़े हैं। काॅलेज के दिनों में डॉ ‘मानव’ जी के साहित्यिक कार्यक्रम देखकर लेखन के प्रति जिज्ञासा ने साहित्य के प्रति इनकी रुचि को जीवंत करने का काम किया। खेती- बाड़ी के साथ लेखन में विशेष उपलब्धियों के फलस्वरूप साहित्यकार बलजीत को अनेक पुरस्कारों के साथ हरियाणा साहित्य अकादमी का श्रेष्ठ कृति पुरस्कार मिल चुका है। 

-डॉ. सत्यवान सौरभ

हिसार जिले के हांसी ब्लॉक के गांव राजपुरा के किसान बलजीत सिंह कहते हैं, “मुझे लिखने का शौक कॉलेज के दिनों से ही था । पढ़ाई के साथ-साथ छोटी-छोटी रचनाएं लिखता रहता था ,परंतु उन्हें किसी समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं में कभी छपवाने का प्रयास नहीं किया । मंजिल को पाने के लिए इन्हें केवल रास्ते की तलाश थी । आखिर एक दिन वो रास्ता मिल ही गया ,जब मैं अपने गुरु जी से मिलने के लिए उनके घर पहुंचा। हिसार के जाने-माने साहित्यकार  डॉ० रामनिवास ‘मानव’  मेरे गुरुवर ,जो वर्ष-1998 में हमें हिसार के छाजूराम मेमोरियल जाट कॉलेज में हिंदी पढ़ाते थे । काॅलेज के दिनों में मुझे ‘मानव’ जी के यहां ,एक-दो साहित्यिक कार्यक्रम देखने के अवसर भी मिले । समझो तभी से मेरी साहित्य के प्रति रुचि  बढ़ने लगी । अपनी अप्रकाशित रचनाओं के बारे में जब मैंने ‘मानव’ जी से बात की , तब उन्होंने मुझे ‘शुभ तारिका’ इत्यादि पत्रिकाओं के बारे में विस्तार से बताया और वहां रचनाएं भेजने को कहा । बस यही वो रास्ता था ,जो मुझे मंजिल की ओर ले गया ।”

साहित्य के जादू ने धीरे-धीरे अपना असर दिखाना शुरू किया और इनकी पहली पुस्तक ‘जीवन दर्शन’ निबंध-संग्रह मई-2013 में प्रकाशित हुई , जिसमें चौरासी निबंध है और इसी के साथ इनकी लेखन-प्रक्रिया में हिम्मत बढ़ने लगी । पहली बार वर्ष-2014 में ‘ पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी ‘ के वार्षिक सम्मान-समारोह में शामिल होने के लिए इनको शिलांग जाने का अवसर मिला । मेघालय की राजधानी में ऐसा शानदार समारोह देखकर ,इनकी विचारधारा ने फिर करवट बदली और मन साहित्य के रंग में पूरी तरह से रंग गया । तीन दिवसीय इस सम्मान-समारोह में ,इनकी मुलाकात देवरिया (उ० प्र०) के प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री सूर्यनारायण गुप्त ‘ सूर्य ‘ जी से हुई । आदरणीय ‘ सूर्य ‘जी ने इनको हाइकु एवं क्षणिकाओं के बारे में काफी विस्तार से समझाया और इन्हीं की प्रेरणा से इन्होंने हाइकु लिखने प्रारंभ किए ।

कलम ने धीरे-धीरे अपनी पकड़ बनाई और वर्ष-2016 में इनकी दूसरी पुस्तक ‘अफसोस ‘ उपन्यास के रूप में प्रकाशित हुई। इस 136 पृष्ठ वाले उपन्यास पर , इनको बहुत सारे सम्मान एवं पुरस्कार भी मिले । कुछ समय बाद इनकी तीसरी पुस्तक ‘डाली का फुल ‘ हाइकु-संग्रह वर्ष-2017 में प्रकाशित हुई ,जिसमें कुल पांच सौ हाइकु है । हाइकु एक जापानी विधा है और इसे दुनिया की सबसे छोटी कविता भी कहा जाता है । मध्य प्रदेश की संस्कारधानी नगरी जबलपुर में इसे प्रथम पुरस्कार भी मिला । वर्ष-2017 में इनकी चौथी पुस्तक ‘सफाई-अभियान’ क्षणिका-संग्रह प्रकाशित हुई ,जिसमें 290 के आसपास छोटी-छोटी क्षणिकाएं है । सौभाग्य से इस पुस्तक पर इनको नेपाल तथा उज्जैन में सम्मानित होने का अवसर मिला । 

दिसंबर-2019 में इनकी पांचवीं पुस्तक ‘काले पानी का सफेद सच’ यात्रा-वृत्तांत प्रकाशित हुई ,जिसमें अंदमान-निकोबार से लेकर नेपाल तक की ग्यारह यात्राओं का वर्णन है । वैसे हिंदी साहित्य में यात्रा-वृत्तांत पसंदीदा विधा है । इस पुस्तक पर इनको हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा ‘श्रेष्ठ कृति पुरस्कार -2020’ प्राप्त हुआ । मार्च 2020 में कोरोना नामक महामारी ने ,जैसे ही हमारे देश में दस्तक दी तो इनको ऐसा महसूस हुआ– मानो ज़िन्दगी थम सी गई हो । मानो समय का पहिया थम गया हो और इस थमी हुई ज़िन्दगी में यानी करवट बदलती हुई ज़िन्दगी में , इन्होंने डायरी लिखने का काम शुरू किया । आखिर 2020 के अंत में इनकी छठी पुस्तक ‘ खबरदार ! बाहर कोरोना है…’ डायरी विधा के रूप में प्रकाशित हुई ,जिसमें 25 मार्च से लेकर 30 जून तक के समाचारों के साथ-साथ इनकी व्यक्तिगत दिनचर्या का वर्णन है।

 वर्ष-2022 के नवम्बर महीने में , इनकी सातवीं पुस्तक ‘शरीफों के घर में’ उपन्यास के रूप में प्रकाशित हुई । इस उपन्यास का मुख्य उद्देश्य यही है :–आदमी मोह-माया के जाल में , जब रिश्ते-नातों को ढाल की तरह प्रयोग करने लगता है ; तब सच्चाई रूपी तलवार ,उस ढाल को झटके के साथ हिला देती है । करीब दो सौ पृष्ठ वाले इस उपन्यास में, रिश्तों की डोर का गहराई से वर्णन किया है ।

इनकी आठवीं पुस्तक ‘ हिमाचल प्रदेश की हसीन वादियां ‘ यात्रा-वृत्तांत ,वर्ष-2023 के जनवरी महीने में प्रकाशित हुई और इस पुस्तक को लिखने के पीछे इनका केवल एक ही उद्देश्य था – हमारे भारत के लाहौल-स्पीति जैसे दुर्गम क्षेत्रों के प्राकृतिक सौंदर्य का दीदार करना। इनकी नौवीं पुस्तक ‘भारत के रंग-रंगीले शहर’ यात्रा-वृत्तांत वर्ष-2023 के अक्टूबर महीने में प्रकाशित हुई । इसमें कोई संदेह नहीं कि यात्राओं से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है । इस पुस्तक में सात यात्राओं का वर्णन है , जिनमें धर्मशाला ,भीमबैठका ,देहरादून-मसूरी , हल्दीघाटी -उदयपुर , मनाली ,भरतपुर एवं नागपुर शहर की यात्राएं शामिल है। 

पक्षियों की दुनिया भी बेहद खूबसूरत है । खासकर इनकी मीठी आवाज का जादू हमेशा से हमारे दिलों पर राज करता आया है । वर्ष-2022 के दौरान इन्हें भरतपुर शहर के ‘ केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान ‘ में घूमने का अवसर मिला । करीब 29 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस राष्ट्रीय उद्यान में पक्षियों की साढ़े तीन सौ से अधिक प्रजातियां पाई जाती है । पक्षियों के बारे में रोचक जानकारी से संबंधित इनकी दसवीं पुस्तक ‘ पक्षियों के संसार में ‘ यात्रा-वृत्तांत जून -2024 में प्रकाशित हुई । खेती किसानी के साथ साहित्य में उल्लेखनीय कार्यों के लिए बलजीत सिंह को देश-विदेश की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा अब तक मुझे दो दर्जन से अधिक सम्मान मिल चुके है ।

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