‘‘अविश्वास प्रस्ताव हमारा व्यक्तिगत मसला नहीं, बल्कि, देश के संविधान और संसदीय लोकतंत्र को बचाने का प्रयास है। हमने देश के संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए मजबूरी में यह कदम उठाया है।’’
नई दिल्ली। (आवाज न्यूज ब्यूरो) राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के मुद्दे पर बुधवार को ‘इंडिया’ गठबंधन के अधिकांश घटक दल एक साथ दिल्ली में एक मंच पर आए। विपक्ष के करीब 70 सदस्यों ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है।
विपक्षी दलों की ओर से बोलते हुए राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि पूर्व में सभी सभापति नियमों के अनुसार कार्य करते रहे हैं। लेकिन, आज सदन में नियम कम और राजनीति ज्यादा हो रही है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि मैं किसी दल का नहीं हूं। लेकिन, हमें अफसोस है कि आज सभापति के पक्षपाती रवैये के कारण हमें अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़ा है।
खड़गे ने कहा कि सभापति प्रतिपक्ष के नेताओं को विरोधी के तौर पर देखते हैं। वह कभी स्वयं को आरएसएस का एकलव्य बताते हैं तो कभी सरकार की तारीफ करते हैं। राज्यसभा के सभापति नई नियुक्ति पाने के लिए यह सब कर रहे हैं। विपक्ष के सांसदों में वरिष्ठ वकील, लेखक, शिक्षक और विद्वान हैं। लेकिन, सभापति इनसे पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं और एक हेडमास्टर जैसा बर्ताव करते हैं। हाउस को बाधित करने का काम सत्ता पक्ष और सभापति द्वारा किया जा रहा है। विपक्ष के सांसद सभापति से सदन में संरक्षण मांगते हैं। लेकिन, सभापति सरकार का पक्ष लेते हैं। पहली बार ऐसे उपराष्ट्रपति हैं, जो विपक्ष की सरेआम निंदा करते हैं। सभापति को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर काम करना चाहिए। लेकिन, वह ऐसा नहीं करते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि राज्यसभा के सभापति सत्ता पक्ष के लोगों को विपक्ष के खिलाफ बोलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। जब हमने नियम-267 के तहत बोलने की अनुमति मांगी तो उन्होंने हमें नहीं बोलने दिया। जब सत्ता पक्ष के लोगों ने नियम-267 के तहत बोलने की अनुमति मांगी तो उनके सदस्यों को बोलने का मौका दिया गया। अविश्वास प्रस्ताव हमारा व्यक्तिगत मसला नहीं, बल्कि, देश के संविधान और संसदीय लोकतंत्र को बचाने का प्रयास है। हमने देश के संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए मजबूरी में यह कदम उठाया है।
डीएमके के राज्यसभा सांसद तिरुचि शिवा ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में नेता प्रतिपक्ष और नेता सदन महत्वपूर्ण होते हैं। लेकिन, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष को बोलने का मौका नहीं मिल रहा है। सदन में केवल सत्ता पक्ष को दिखाया जाता है। सोनिया गांधी वरिष्ठ नेता हैं। उन पर बेबुनियाद आरोप लगाए जा रहे हैं। सदन में सत्ताधारी पक्ष को विपक्ष की आवाज सुननी चाहिए। लेकिन, ऐसा बिल्कुल नहीं हो रहा है। विपक्ष को बोलने का मौका ही नहीं मिल रहा, इसलिए विपक्ष ने सभापति की पक्षपातपूर्ण कार्यवाही के खिलाफ प्रस्ताव लाया है।
समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद जावेद अली खान ने कहा कि राज्यसभा में सभापति ने विपक्ष को पूरी तरह से नकार दिया है। हम देश में दूसरे सबसे बड़े पद पर आसीन व्यक्ति के खिलाफ यह प्रस्ताव बहुत दुखी होकर ला रहे हैं। विपक्ष के सांसद जो बोलते हैं, अक्सर उसे संसद के रिकॉर्ड से हटा दिया जाता है।
राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा का कहना था कि यह पूरी कोशिश किसी एक व्यक्ति के विरोध में नहीं है, बल्कि यह व्यवस्था को बदलने के लिए है। हमें मणिपुर या फिर संभल जैसे मुद्दों पर बोलने का मौका नहीं मिलता। शिवसेना (यूबीटी) के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने कहा कि राज्यसभा के सभापति सदन नहीं चलाते हैं। वह सर्कस चला रहे हैं। यह व्यक्तिगत लड़ाई नहीं हैं। यह संसद को बचाने की लड़ाई है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सरफराज अहमद ने कहा कि हमने कभी ऐसा सभापति नहीं देखा। शरद पवार की एनसीपी की राज्यसभा सदस्य फौजिया खान ने कहा कि सत्ता पक्ष चाहे कितना भी हमारे खिलाफ बोले, उन्हें इसकी इजाजत दी जाती है। लेकिन, विपक्ष को बोलने नहीं दिया जाता। इसी कारण हम यह नोटिस देने पर मजबूर हुए हैं।
इस दौरान आम आदमी पार्टी का कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं था। विपक्ष के नेताओं का कहना था कि आम आदमी पार्टी के सांसदों को चुनाव आयोग जाना था, इसलिए इस कार्यक्रम में नहीं आ सके। लेकिन, उनके पांच सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं।
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