‘‘छात्रों ने सरकार को उखाड़ फेंकने का किया ऐलान’’
‘‘डेढ़ माह में देश में दो बड़े छात्र आंदोलन’’
‘‘यूपी में योगी और बिहार में नीतीश छात्रों के निशाने पर’’
‘‘ठीक 50 वर्षों बाद बिहार में जेपी आंदोलन की तर्ज पर छात्र आंदोलन’’
नई दिल्ली। (आवाज न्यूज ब्यरो) 1974 में छात्रों का एक छोटा सा आंदोलन इतना व्यापक हुआ कि इंदिरा गांधी सरकार को आपातकाल लगाना पड़ा। ठीक 50 वर्ष बाद एक बार फिर बिहार में छात्र आंदोलन सुलग रहा है। छात्रों के शांतिपूर्वक मार्च पर बीती रात बिहार पुलिस ने बर्बरतापूर्वक कार्रवाई की जिसके चलते छात्रों का गुस्सा सांतवे आसमान पर है और उन्होंने आर-पार की लड़ाई का मूड बना लिया है। बिहार में ठीक 50 वर्षों बाद एक बार फिर जेपी आंदोलन जैसा छात्र आंदोलन सुलग रहा है। छात्र गुस्से में हैं और नीतीश सरकार से आर-पार का ऐलान कर दिया है। उधर इस मुद्दे को लेकर सियासी घमासान भी मच गया है। राजद व कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के निशाने पर भाजपा समर्थित नीतीश सरकार आ गई है।
छात्रों का कहना है कि जब अपनी ही सरकार बात न सुने तो उसे बदल देना चाहिए। बीती रात बिहार लोक सेवा आयोग की 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा को रद्द कराने की मांग को लेकर धरने पर बैठने जा रहे छात्रों के हुजूम पर पुलिस ने सर्द रात में लाठियां बरसा दी, जिससे दर्जनों छात्र घायल हो गये। वहीं अभी नवम्बर में यूपी की योगी सरकार ने भी प्रयागराज में छात्रों पर लाठी चार्ज कर दिया था जिससे छात्र उग्र हो गये थे और बाद में भाजपा सरकार को छात्रों के सामने घुटने टेकने पड़े थे।
दोनों घटनाएं मामूली नहीं हैं
डेढ़ माह के भीतर दो राज्यों में दो बड़े छात्र आंदोलन मामूली बात नहीं है। इन दोनों ही आंदोलनों की पृष्ठभूमि एक है। यूपी के छात्र उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) के मनमाने आदेशों के खिलाफ सडक़ों पर उतरे थे तो बिहार के छात्रों का टकराव बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) से हो रहा है। यूपी में भी बीजेपी की सरकार और बिहार में भी बीजेपी सपोर्ट सरकार काम कर रही है। यह दोनों आंदोलन इस लिए भी खास है कि इन आंदोलनों को उन छात्रों ने किया जो आईएएस/पीसीएस बनने जा रहे हैं। यानि कि यह छात्र स्वंय समझदार है, इनहें उकसाया नहीं गया है और यह आंदोलन स्वःआंदोलन है बिलकुल वैसे ही जैसे 1974 में जेपी का आंदोलन था और 1999 में ललित नारायण मिश्रा के नेतृत्तव में छात्रों ने ईंट से ईट बजा दी थी।
छात्र आंदोलन सरकारों के लिए खतरा
छात्रों का आंदोलन अधिक संगठित और तेज़ होता जा रहा है। सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से, छात्र अपने विचारों और विरोध को अधिक प्रभावी तरीके से सामने ला रहे हैं। छात्र आंदोलनों में अब सरकारों के खिलाफ जन भावना जागरूक करने का एक नया तरीका दिखाई दे रहा है। यदि सरकारें छात्रों की समस्याओं का समाधान नहीं करतीं, तो यह आंदोलन और भी उग्र हो सकता है, जो सरकारों के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकता है।
नीतीश सरकार के ताबूत में आखिरी कील साबित होगा आंदोलन
आंदोलनकारी अभ्यर्थी एक बार फिर से गर्दनीबाग धरनास्थल पहुंच गए और धरने पर बैठ गए। अभ्यर्थी प्रदर्शन भी कर रहे हैं। प्रदर्शन में शामिल कटिहार के रहने वाले अनुज कहते हैं, जितनी लाठी मारनी है, सरकार मार ले। लेकिन, हम जायज मांग कर रहे हैं। सरकार कहे तो हमलोग सभी एक पंक्ति में खड़े हो जाएंगे, लाठी मार ले। लेकिन, हम पुनर्परीक्षा पर कायम रहेंगे। यहां सभी जिले के लोग हैं और एक ही मांग कर रहे हैं। पटना की रहने वाली अभ्यर्थी आकृति ने कहा, पुलिस में इंसानियत नहीं है। हम लोग आज निःशब्द हैं। उन लोगों के पुत्र, पुत्रियों के साथ भी यही होगा। बहुत निर्मम तरीके से हम लड़कियों पर लाठीचार्ज किया गया। हम लोगों के पास आज गुस्सा भी है, इमोशन भी है और आंसू भी है। जो लडक़ी अस्पताल में भर्ती है, उसकी स्थिति जाकर देखिए। हम लोग अपनी मांग पर कायम हैं। जब आठ दिनों तक पहुंच गए हैं, तो आगे भी हम लोग 15 दिनों तक जा सकते हैं। अररिया के रहने वाले आकाश ने कहा, आज हम लोग शांतिपूर्ण तरीके से हाथ जोडक़र बीपीएससी चैयरमेन से मिलने गए थे। लेकिन, पुलिस वालों ने हम लोगों के साथ आतंकवादी की तरह व्यवहार किया, हम लोगों के साथ नक्सल की तरह व्यवहार किया गया है। हम लोग सरकार की नजर में छात्र नहीं हैं। हम लोगों को अपनी बात तक रखने नहीं दिया गया। उन्होंने आगे कहा, अगर हमारी बात सरकार नहीं मानी तो यह लड़ाई उनके लिए ताबूत में आखिरी कील साबित होगी।
योगी सरकार के खिलाफ भी यूपी में हुआ छात्र आंदोलन
यूपी में भी कुछ समय पहले छात्रों ने यूपीपीएससी (उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग) के आदेशों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। छात्रों ने यह आरोप लगाया कि आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा में गड़बड़ी है और परीक्षा की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है। यूपी में छात्र आंदोलन ने योगी सरकार को हिला कर रख दिया था। इस आंदोलन के बाद योगी सरकार को अपना रुख बदलने पर मजबूर होना पड़ा और कुछ सुधारात्मक कदम उठाए गए। यह घटनाक्रम यह दिखाता है कि जब छात्र एकजुट होकर अपनी आवाज़ उठाते हैं, तो सरकारें उनके दबाव के आगे झुकने के लिए मजबूर हो जाती हैं।
हमेशा जीतते हैं छात्र
अतीत में कई छात्र आंदोलनों ने सरकारों को हिला दिया है और यह प्रमाणित किया है कि छात्र अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाकर सत्ता के निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध आंदोलन 1974 का जयप्रकाश नारायण आंदोलन” था, जिसमें छात्रों ने भ्रष्टाचार और शासन की नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। इस आंदोलन का असर इतना बड़ा था कि इंदिरा गांधी की सरकार को आपातकाल लगाने की स्थिति उत्पन्न हुई थी। इसके बाद 1990 में जब ललित नारायण मिश्र के नेतृत्व में बिहार में छात्र आंदोलन हुआ, तो वह भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बना।
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