फर्रुखाबाद l (आवाज न्यूज ब्यूरो) शिशु जन्म के शुरूआती 42 दिन अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। ऐसे में होम बेस्ड न्यू बोर्न केयर कार्यक्रम काफी कारगर साबित हो रहा है। इस कार्यक्रम के तहत संस्थागत प्रसव एवं गृह प्रसव दोनों स्थितियों में आशा घर जाकर 42 दिनों तक नवजात की देखभाल करती हैं । स्वास्थ्य विभाग की इस पहल से शिशु मृत्यु दर में गिरावट आई है।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ अवनीन्द्र कुमार का कहना है कि प्रसव के बाद नवजात के बेहतर देखभाल की जरूरत बढ़ जाती है। संस्थागत प्रसव के मामलों में शुरूआती दो दिनों तक मां और नवजात का ख्याल अस्पताल में रखा जाता है। गृह प्रसव के मामलों में पहले दिन से ही नवजात को बेहतर देखभाल की जरूरत होती है।
अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. उमेश चंद्र वर्मा ने बताया कि आशा कार्यकर्ताओं को निर्देशित भी किया गया है कि वह गृह भ्रमण के दौरान नवजात में होने वाली समस्याओं की अच्छे से पहचान करें एवं जरुरत पडऩे पर उन्हें रेफर भी करें। आशा कार्यकर्ता गृह भ्रमण के दौरान न सिर्फ बच्चों में खतरे के संकेतों की पहचान करती हैं, बल्कि माताओं को आवश्यक नवजात देखभाल के विषय में जानकारी भी देती हैं।
जिला सामुदायिक प्रक्रिया प्रबन्धक रणविजय प्रताप सिंह ने बताया कि एचबीएनसी कार्यक्रम के कारण जन्म के बाद शिशुओं में होने वाली जटिलताओं का भी पता चलता है। जिसका समय पर इलाज संभव हो पाता है। कार्यक्रम के तहत आशा संस्थागत एवं गृह प्रसव दोनों स्थितियों में गृह भ्रमण कर नवजात शिशु की देखभाल करती है। संस्थागत प्रसव की स्थिति में छह बार (जन्म के 3, 7,14, 21, 28 एवं 42 वें दिवस पर) गृह भ्रमण करती हैं । गृह प्रसव की स्थिति में 7 बार (जन्म के 1, 3, 7,14, 21, 28 एवं 42 वें दिवस पर) गृह भ्रमण करती हैं।
श्री रणविजय ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्र में 1501 आशा कार्यकर्ता कार्य करती हैं जिनको अपने क्षेत्र में पैदा होने वाले नवजात शिशु की 42 दिन तक देखभाल करनी होती है | इसके लिए सरकार द्वारा 250 रूपये दिए जाते हैं l
सीएचसी बरौन के अन्तर्गत आने वाले ग्राम पपियापुर की रहने वाली कुसुमा ने बताया कि मेरा बच्चा 9जुलाई को पैदा हुआ था तब से आशा दीदी गिरजा मेरे बच्चे को देखने 4 बार आ चुकी हैंl इस दौरान उन्होंने उसका वजन लिया, बुखार देखा, उसकी नाभि देखी, बच्चे को अपना दूध पिलाना है इस बारे में जानकारी दी साथ ही जितने बार बच्चे को गोद में लेना हाथ धोकर लेना है इस बारे में बताया l आशा दीदी जब घर आती हैं और बच्चे के बारे में कहती हैं कि आपका बच्चा स्वस्थ है तब जाकर अच्छा लगता है l
कार्यक्रम का उद्देश्य :
– सभी नवजात शिशुओं को अनिवार्य नवजात शिशु देखभाल सुविधाएं उपलब्ध कराना एवं जटिलताओं से बचाना
– समय पूर्व जन्म लेने वाले नवजातों एवं जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों की शीघ्र पहचान कर उनकी विशेष देखभाल करना
– नवजात शिशु की बीमारी का शीघ्र पता कर समुचित देखभाल करना एवं रेफर करना
– परिवार को आदर्श स्वास्थ्य व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित करना एवं सहयोग करना
– मां के अंदर अपने नवजात स्वास्थ्य की सुरक्षा करने का आत्मविश्वास एवं दक्षता को विकसित करना
इन लक्षणों को न करें अनदेखा :
सही समय पर नवजात की बीमारी का पता लगाकर उसकी जान बचायी जा सकती है। इसके लिए खतरे के संकेतों को समझना जरुरी होता है। खतरे को जानकर तुरंत शिशु को नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र ले जायें।
– शिशु को सांस लेने में तकलीफ हो
– शिशु स्तनपान करने में असमर्थ हो
– शरीर अधिक गर्म या अधिक ठंडा हो
– शरीर सुस्त हो जाए
– शरीर में होने वाली हलचल में अचानक कमी आ जाए