पीडीए वर्सेज अन्य की राजनीतिक लड़ाई अब बाबा साहेब तक आई

नई दिल्ली। (आवाज न्यूज ब्यूरो)। ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में लगने जा रही बाबा साहेब की मूर्ति को कुछ वकीलों ने नहीं लगने दिया। मूर्ति लगने की तैयारियां पूरी हो चुकी थी और फाउंडेशन वर्क आदि को पूरा किया जा चुका था। उसके बाद भी मूर्ति नहींं लगने दी गयी।
इस मामले में राहुल गांधी, अखिलेश यादव, स्टालिन और ममता बनर्जी जैसे राजनेता पहले से ही सरकार को दलित उत्पीडऩ पर घेर रहे हैं। कई पर इस तरह के बयान समाने आये हैं जिसमें दलितों की आवाज को दबाये जाने का आरोप लगा है। ऐसे महौल में बाबा साहेब की मूर्ति का यह मामला अतिसंवेदनशील रूख अखितयार कर रहा है। ग्वालियर मूर्ति प्रकरण विवाद में बीजेपी की स्थिति असहज है। विपक्षी पार्टियां लगातार दलित उत्पीडऩ का आरोप लगा रही है। यूपी जैसे महत्वपूर्ण राज्य में बीजेपी लोकसभा चुनाव में बड़ी हार का सामना कर चुकी है। बीजेपी रणनीतिकारों ने भी यही माना की पार्टी इस मुददे पर विपक्ष का समाना नहीं कर सकी और उसकी हार हुई। सपा/कांग्रेस पीडीए की जंग में धार देने में लगी है। ऐसे में राष्ट्रीय फलक पर इस तरह की खबरें दलित/ ओबीसी की बैचेनी को बड़ाने का काम करती है। ग्वालियर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के कुछ वकील नहीं चाहते है कि हाईकोर्ट परिसर में बाबा साहेब की मूर्ति लगे। एडवोकेट पवन पाठक के नेतृत्व में बार एसोसिएशन ने यह कहते हुए मूर्ति स्थापना का विरोध किया है कि न्यायालय परिसर में कोई भी मूर्ति नहीं लगाई जानी चाहिए क्योंकि यह सर्वधर्म समभाव और जात-पात से ऊपर उठकर काम करता है। अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करने के लिए कोर्ट परिसर में फाउंडेशन स्ट्रक्चर तक तैयार किया जा चुका था। लेकिन वीकीलों के झुंड ने मूर्ति स्थापना का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर महापुरुषों की मूर्तियाँ लगाने से मना किया गया है।
भीम सेना भी कूदी
इस पूरे विवाद में भीम सेना भी कूद पड़ी है। भीम सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवाब सतपाल तंवर ने कहा है कि ग्वालियर हाईकोर्ट में डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा लगाने से रोकना न सिर्फ गलत है बल्कि यह संविधान निर्माता और एससी समाज का अपमान है। उन्होंने कहा है कि बाबा साहब के विचार वर्ण व्यवस्था को चुनौती देते हैं। उनके नाम, तस्वीर और मूर्ति से एक वर्ग हमेशा असहज महसूस करता है क्योंकि वह सत्ता-संरचना की जड़ें हिलाते हैं। उनके मुताबिक कोर्ट जैसी संस्थाओं में जब दलित अस्मिता के प्रतीक आते हैं तो यह सामाजिक वर्चस्ववादी मानसिकता को चुनौती देने काम करते हैं। मूर्ति का विरोध उसी भय का प्रतिबिंब मात्र है।
अगड़ा बनाम पिछड़ा, बनता विवाद
ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा लगाने को लेकर उपजे विवाद ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आज़ादी के 77 वर्षों बाद भी बाबा साहेब को लेकर समाज का एक वर्ग अब भी असहज क्यों है। यह विवाद केवल एक मूर्ति का नहीं है, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था की आत्मा, बहुजन अस्मिता और ब्राह्मणवादी मानसिकता के टकराव की एक झलक है।

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