बृजेश चतुर्वेदी
तिर्वा। कभी स्टेट के रूप में विख्यात रहे इस नगर में राज परिवार का कोई सदस्य कभी सांसद या विधायक नहीं बना। कन्नौज-झांसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसे इस कस्बे का सियासी गणित भी अलग है। हालांकि सुख-सुविधाओं से संपन्न इस शहर में कभी किसी एक दल का अधिपत्य नहीं रहा बल्कि एक मिथक यहां से जुड़ा हुआ है कि यहां से जिस पार्टी का विधायक बनता है, उसी दल की सूबे में सरकार बनती है। तिर्वा विधानसभा क्षेत्र को पहले उमर्दा विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था, लेकिन 2017 विधानसभा चुनाव में हुए परिसीमन में यह सीट तिर्वा विधानसभा क्षेत्र हो गई। राजकीय मेडिकल कालेज, राजकीय इंजीनियरिग कालेज, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे, पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट, हृदयरोग संस्थान, कैंसर इंस्टीट्यूट समेत कई परियोजनाएं तिर्वा विधानसभा क्षेत्र के आंचल में हैं। वैसे तो इस क्षेत्र में सभी जातियां हैं, लेकिन यह सीट लोधी बाहुल्य मानी जाती है। यहां मुद्दों पर जातियों का समीकरण हावी है। मतलब जिसने जातियों को जीत लिया, सीट उसी की हो गई। प्रत्याशी भी जातियों के गुणा-भाग में लगे हुए हैं। क्योंकि जातियों के चक्रव्यूह को तोड़ने से ही जीत निकलेगी। इस बार विधानसभा चुनाव में तिर्वा का ताज किसके सिर सजेगा, यह तो वक्त ही बताएगा। मेडिकल कालेज के पास चाट के ठेले पर कुछ लोग खड़े होकर पानी के बताशे खा रहे थे। सियासत नब्ज पकड़ने के लिए पूछा कि इस बार तिर्वा में किसका जोर है, सुखेंद्र बोले, इस बार जोर पुराने वालों का है। रोजगार और कानून की बात होनी चाहिए। दो बजे तिर्वा के ठठिया चौराहे पर पं. दीनदयाल उपाध्याय की प्रतिमा के पास मां संतोषी देवी मंदिर के पास बरुआहार गांव निवासी अरविद राजपूत होटल पर समोसा बना रहे हैं और वहीं पर कुछ लोग बैठकर चुनावी चर्चा कर रहे हैं। उन्हीं में से एक आमिर अहमद बोले कि हमैं विधायक नाहीं बनिबे, हमैं तो केवल रोजगार मिल जाए, बहुत है। पवन राजपूत बात काटते हुए बोले कि जितने पढ़े हुईहौ, उसी हिसाब से रोजगार मिल रहो है। हरीराम राजपूत जोर से बोले, साड़न ने तौ खेतन में कुछ पैदा नाहीं होन दौ। रात भर में सब चरजात हैं। संजीव राजपूत अयोध्या में राम मंदिर बनाईवो छोटी बात है। हसीन खां ने तर्क देते हुए कहा, जाति-पात की राजनीति न करौ। जीतन के बाद जनता को एक समान समझे। अहमद ने समर्थन किया और कहा महंगाई बढ़त जाई रही। कोरोना में दुकान को धंधा खाई लौ। गुड्डू राजपूत ने कहा, हमै का करिबे। रोज कमाने है और रोज खाने है। मिटू चक्रवर्ती ने कहा कि नहीं, हम एक जिम्मेदार लोग हैं। आज जैसो नेता चुनिहौ, कल हमैं बईसो ही परिणाम मिलिहै। कुछ कहौ, वोट 20 फरवरी को वोट डालन जरुर जइओ।
ठठिया रोड पर आगे बढ़े तो यहां दुकान के बाहर अनिल मिल गए, बोले हमतो किसान हैं, जानवर ने बर्बाद करि दओ। मुद्दों पर की तो अलि बोले, तिर्वा को चुनाव कबहूं विकास पर भओ ही नाही। अगर अइसो होतो तो डिपल कबहूं नाही हारतीं। तभी पास में खड़े योगेंद्र बोल पड़े, एक बात बताएं भइया, हियन जातियन को जोर है, जहीनै जातियों में पैठ बनाए लई, समझो वही जीति गओ। मगर इस बार अजय वर्मा के बसपा में चले जाने से, लड़ाई कांटे की हुई गई है।तिर्वा में वर्तमान में भाजपा विधायक कैलाश राजपूत फिर से मैदान में हैं तो सपा ने यहां से पूर्व विधायक और मंत्री रहे विजय बहादुर पाल के बेटे इंजीनियर अनिल पाल को मैदान में उतारा है। बसपा से अजय वर्मा भी ताल ठोंक रहे हैं। वह भी भाजपा से टिकट मांग रहे थे, जब नहीं मिली तो पार्टी से बगावत कर हाथी पर सवार हो गए। कांग्रेस ने पूर्व जिलाध्यक्ष प्रमोद शाक्य की पत्नी को टिकट दिया था, लेकिन उनका पर्चा ही खारिज हो गया था। अनिल और अजय का यह पहला चुनाव है, जबकि कैलाश राजपूत यहां से बसपा से भी विधायक रह चुके हैं। 2017 में भाजपा के कैलाश सिंह 100426 वोट पाकर जीते थे जबकि तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा राज्य मंत्री और सपा प्रत्याशी विजय बहादुर पाल 76217 मत पाकर रनरअप रहे थे। विजय सिंह बसपा से प्रत्याशी थे और उन्हें 32036 पाकर संतोष करना पड़ा था। इस बार इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 379565 मतदाता हैं जिनमे पुरुष 205838 और महिला 173704 तथा थर्ड जेंडर – 23 हैं।