नई दिल्ली (आवाज न्यूज ब्यूरो) बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सरकार को विधानसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट से एक बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश कुमार सरकार के 9 साल पुराने एक फैसले को निरस्त कर दिया है। यह मामला साल 2015 का है, जब नीतीश कुमार की सरकार ने तांती-तंतवा जाति को अनुसूचित जाति में शामिल कर लिया था। वहीं अब इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने स्पष्ट किया कि किसी भी राज्य सरकार को अनुसूचित जाति की सूची में किसी जाति का नाम जोड़ने या हटाने का अधिकार नहीं है। यह अधिकार सिर्फ संसद को है।
सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश सरकार के इस फैसले को संविधान के साथ शरारत करार दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी जाति को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने से अनुसूचित जाति के लोगों के अधिकारों का हनन होता है। संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत राज्य सरकार को अनुसूचित जाति की सूची में किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ करने का अधिकार नहीं है। इसलिए, बिहार सरकार द्वारा 2015 में जारी किया गया यह संकल्प अवैध है और इसे रद्द किया जाता है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट को भी फटकार लगाई है, क्योंकि हाई कोर्ट ने भी राज्य सरकार के इस फैसले का समर्थन किया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि अनुसूचित जाति की सूची में किसी भी बदलाव का अधिकार केवल संसद के पास है और राज्य सरकारें इस सूची में किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं कर सकतीं।
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